संजय नामदेव ,कोलारस-
कोलारस
का पूरनखेड़ी टोल प्लाजा शुरूआत से ही विवादों में घिरा रहा है कभी अबैध बसूली के
लिये तो कभी यहां होने बाली वारदातों को लेकर या फिर टोल प्रबंधन के हिटलरशाही
रवैये को लेकर हो लेकिन किसी न किसी कारण से यह टोल प्लाजा हमेशा विवादों से घिरा
रहा रहा है जिसका मूल कारण प्रशासन की अंदेखी भी कहा जा सकता है। लेकिन अंदेखी भी
किस हद तक कहें कि आये दिन किसी किसी विषय को लेकर यहां घटना- दुर्घटनाओं का होना
आम सा हो गया है जिसे देखते हुऐ यहां कहा जा सकता है कि पूरनखेड़ी टोल प्लाजा
क्षेत्र के लिये आफत का अड्डा बना हुआ है । जिसे लेकर जिम्मेदारों को अब सजग होना
पड़ेगा और अगर ऐसा नहीं हुआ तो जो हो रहा है उससे ज्यादा दुखद और क्या होगा।
कुलमिलाकर क्ष्ोत्र के लिये आफत का अड्डा बने इस टोल प्लाजा प्रबंधन की
हिटलरशाही यूं ही बरकार रहेगी और आये दिन हाइवे पर चलने बाले वाहन चालक इनकी गुंडई
और अबैध बसूली का शिकार होते रहेंगे, या फिर क्षेत्र की जनता यहां होने
बाले हादसों का यूं ही शिकार होती रहेगी।
क्या
टोल प्रबंधन पर अंकुश लगाने का नहीं है कोई कानूनी प्रावधान-
अस्तित्व
में आने से लेकर आज तक पूरनखेड़ी टोल प्लाजा पर आये दिन सामने आ रहे वाद-विवादों
को लेकर जिम्मेदारों का मौन रवैया क्या यह साबित कर रहा है कि टोल प्रबंधन पर
अंकुश लगाने का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है । या फिर जिम्मेदार आखें मूंद कर यह
संदेश क्षेत्र की जवरन क्षेत्र की जनता तक पहुंचाना चाहते हैं । क्या यहां इन
घटना- दुर्घटनाओं को अंदेखा किया जा सकता है या किया जाना चाहिऐ जहां इस टोल प्लाजा
कर कई जाने चली गईं या फिर आये दिन टोल प्रबंधन के गुंडों द्वारा वाहन चालकों की
मारपीट की जाती है या फिर वो ताजा मामला जहां 2 माह की बच्ची की जान महज इस लिये
आफत में डाल दी जाती है कि टोल के कर्मचारी लापरवाही पूर्ण तरीके से मान माफिक
कार्य कर रहे हैं जो एक ऐम्बुलेंस तक को रास्ता दिया जाने को प्राथमिकता नहीं
देते हैं। इतना सब हो जाने के बाद भी जिम्मेदारों की यह चुप्पी यहां सोचने पर
मजबूर कर देने के लिये काफी है कि क्या टोल प्रबंधन पर अंकुश लगाने का कोई कानूनी
प्रावधान नहीं है ।
जनप्रतिनिधीयों
के भी बस से बाहर है यह मामला-
क्या
पूरनखेड़ी टोल प्लाजा पर लिखा जा रहा विवाद ग्रन्थ भविष्य के किसी पुस्तकालय
या इतिहास के पन्नों की शोभा बढ़ायेगा या फिर क्षेत्रीय विकास में कहीं अपनी
भूमिका अदा करेगा आखिर इस सब के बीच क्या भविष्य की कुछ कल्पनाऐं गढ़ी जा रही
हैं या फिर क्या बाकई में यहां कहा जाना सटीक है कि जनप्रतिनिधीयों के भी बस से
बाहर है टोल प्रबंधन की हिटलरशाही पर अंकुश लगाने की प्रक्रिया, यह एक बड़ा सबाल बनकर सामने आ रहा है
जिस पर सभी को विचार करने की आवश्यक्ता है।