फिट लिस्ट से बाहर दानों प्रत्याशी तो क्या अब तीसरे में भविष्य देख रही पोहरी की आवाम

 

पोस्टमार्टम@ राहुल महाराज, उत्कर्ष बैरागी (दबंग) शिवपुरी-

मध्यप्रदेश में हुऐ सियासी फेरवदल के उपरान्त होने जा रहे उपचुनाव पर सबकी निगाहें गढ़ी हुई हैं। चूंकि यह उपचुनाव एक या दो नहीं वल्कि 28 सीटों पर होने जा रहे हैं और हर सीट पर अपनी एक अलग ही कहानी है। इसी क्रम में आज हम बात कर रहे हैं ग्वालियर चंबल की विधानसभा सीट पोहरी की जो कि ग्वालियर चंबल में अपनी एक अलग ही छाप छोड़ती है। अगर बात करें परिणामों की तो यहां हर वार परिणाम चैकाने बाले ही सामने आते रहे हैं।

लेकिन इस बार परिणामों को लेकर अभी कुछ कहना जल्दवाजी होगी। क्योंकि पोहरी विद्यानसभा की राजनीति में हमेशा से हावी रहने वाला जातिवाद और दरकिनार रहे स्थानीय मुद्दे यहां की तस्वीर को वखूबी वयां कर रहे हैं यहां की तस्वीर को देखने के उपरान्त कुछ कहने या सुनने की कोई गुंजाइश ही नहीं रह जाती है। लेकिन इस सब से उलट इस बार उपचुनाव में माहौल कुछ नया और रोचक वनता नजर आ रहा है तो आईऐ आज इस उपचुनाव का पोस्टमार्टम करते हैं ।

जैसा कि इस उपचुनाव में भी हर वार की तरह तीनों ही प्रमुख दलों भाजपा, कांग्रेस और बसपा के प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं तथा अन्य निर्दलीय उम्मीदवार भी अपना भाग्य आजमा रहे हैं जो कि एक आम बात है लेकिन खास बात यह भी है कि इस बार चेहरे तो पुराने ही हैं वस दल बदल गये हैं विगत वर्ष 2018 में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में विजयश्री प्राप्त कर चुके सुरेश राठखेड़ा अब वीजेपी के साथ होकर चुनाव मैदान में हैं तो वहीं दूसरी ओर चार दलों का तीर्थाटन कर दो बार पोहरी से विधायक रहे हरिवल्लभ शुक्ला इस बार कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में सामने हैं इसके अलावा बसपा के कैलाश कुशवाह भी दलवदल की राजनीति से अछूते नहीं हैं यह वही प्रत्याशी हैं जिन्होंने जातिवाद से श्रापित पोहरी विद्यानसभा में ब्राह्मण और किरार (धाकड़) के अलावा तीसरी जाति तीसरे आंकड़े वाले राजनीतिक गणित को जन्म दिया और एक अह्म भूमिका अदा की।

अर्थात उपचुनाव में पुनः मैदान में उतरे तीनों प्रत्याशी आवाम के लिये नये नहींे है पोहरी की आवाम इन्हें जानती ही नहीं बल्कि भलीभांति पहचानती भी है। और यही वह मुख्य कारण भी है जिसने इस उपचुनाव में माहौल को हमेशा से परे एक नया अंदाज दिया है। 

यहां आवाम के नजरिये की यदि वात करें तो दोनों ही प्रत्याशी भाजपा के सुरेश राठखेड़ा और कांग्रेस के हरिवल्लभ शुक्ला आवाम की फिट लिस्ट से बाहर होते नजर आ रहे हैं। दोनों ही प्रत्याशीयों का क्षेत्र में ही नहीं अपितु अपने दलों में भी जमकर विरोध होता साफ दिखाई दे रहा है। ऐसे में कहा जा सकता है कि इस बार  पोहरी की आवाम तीसरे प्रत्याशी में अपना भविष्य देख सकती है।

आईये जरा विस्तार से समझ लेते हैं दोनों की कहानी-

भाजपा प्रत्याशी सुरेश राठखेड़ा- 

विगत चुनाव में कांग्रेस के टिकिट पर चुनाव मैदान में उतरे सुरेश राठखेड़ा को आवाम ने अपना अमूल्य मत देकर पांच साल के लिये विधायक चुना लेकिन इन्होंने महज एक वर्ष के कार्यकाल के उपरान्त ही आवाम के इस भरोसे को पैरों तले रोंदते हुऐ अपने आका का अनुसरण कर विधायक पद से स्तीफा देकर दल बदलकर भाजपा का दामन थाम लिया। इस बीच इनके एक वर्ष का कार्यकाल भी काफी चर्चित रहा जिसमें इन्होंने आवाम की अपेक्षाओं को दरकिनार कर किस प्रकार विधायकी की इसका उदाहरण ग्रामीण क्षेत्रों में दौड़ते डंफर और एसडीओपी की वायरल आॅडियो से लगाया जा सकता है।

इसके अलावा अब बात करें दल बदलने की तो कांग्रेस छोड़कार भाजपा में शामिल होना भले ही आलाकमान ने स्वीकार कर लिया हो लेकिन स्थानीय स्तर पर पार्टी के कार्यकर्ताओं और धाकड़ समाज ने इसे कितना स्वीकार किया है इसका अंदाजा भी पार्टी की स्थानीय नेताओं में आपसी कलह और समाज में निर्मित विखराव की स्थिति से लगाया जा सकता है।

कांग्रेस प्रत्याशी हरिवल्लभ शुक्ला-

पोहरी सीट से दो बार विधायक रह चुके हरिवल्लभ शुक्ला इस बार पुनः कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में हैं। यहां गौरतलव होगा कि पोहरी विद्यानसभा सीट से दो वार विधायक चुने गये हरिवल्लभ शुक्ला को इसी सीट पर दो वार हार का मूंह भी देखना पड़ा है। और अब यह पांचवी वार चुनाव मैदान में हैं लेकिन अपने पिछले दो वार के कार्यकाल की इनकी कोई खास पूंजी इनके पास नहीं है जिसे लेकर यह चुनाव मैदान में आवाम से रूवरू हो सकें इसलिये अब वे भावनात्मक तौर पर आखिरी वार चुनाव लड़ने की बात को लेकर आवाम के मन में अपने लिये जगह तलाश रहे हैं। इसके अलावा अगर बात करें ब्राह्मण समाज की तो सामाजिक तौर भी इनका विरोध साफ नजर आ रहा है क्योंकि कांग्रेस में अन्य वरिष्ठ व्रहामण नेता भी टिकिट के लिये दम भर रहे थे और फिर ऐसे में टिकिट न दिये जाने को लेकर वे स्वयं को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। यहां बताना लाजमी होगा कि कांग्रेस से अधिक ब्राह्मण नेता भाजपा में हैं जो कि अपने प्रत्याशी के लिये कार्य कर रहे हैं ऐसे में समाज के बलवूते भी चुनाव मैदान में टिकपाना कैसे संभव होगा यह तो परिणाम ही वता पायेंगे।  

कुलमिलाकर दोनों ही प्रमुख दलों के प्रत्याशी आवाम की फिट लिस्ट से वाहर हैं। अब देखना यह है कि जातिवाद के दंश से श्रापित पोहरी विद्यानसभा इस बार कुछ नया इतिहास गढ़ती है या फिर हर वार की तरह इस बार भी अपने भविष्य से खिलवाड़ का रास्ता इख्तियार करती है।

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