
राष्ट्रवीर दुगार्दास राठाैर की जयंती पर बैनीपुरा में भैराेबाबा मंदिर पर पुष्पमाला अर्पित कर राठौर समाज के लोगों ने पूजन किया। इस दौरान राठौर समाज आयोजन समिति कार्यक्रम के संयोजक पवन सिंह राठौर ने संबोधित कहा कि वीर शिरोमणि दुर्गादास राठौर का नाम मेवाड़ ही नहीं, अपितु संपूर्ण हिन्दुस्तान के इतिहास में त्याग, बलिदान, देश-भक्ति व स्वामिभक्ति के लिए स्वर्ण अक्षरों में अमर है।
उन्होंने कहा कि मेवाड़ की स्वतंत्रता के लिए वर्षों तक संघर्ष करने वाले वीर पुरुष दुर्गादास राठौर का जन्म जोधपुर के एक छोटे से गांव सलवाकलां में आसकरन राठौर के घर 13 अगस्त, सन् 1638 को हुआ था। आसकरन जी जोधपुर नरेश महाराजा जसवंत सिंह की सेना में थे। अपने पिता की भांति बालक दुर्गादास में भी वीरता के गुण कूट-कूट कर भरे थे। एक बार जोधपुर राज्य की सेना के कुछ ऊंट चरते हुए आसकरन के खेत में घुस गए। बालक दुर्गादास के विरोध करने पर चरवाहों ने कोई ध्यान नहीं दिया तो वीर युवा दुर्गादास आग बबूला हो गए और तलवार निकालकर एक ही पल में ऊंट की गर्दन उड़ा दी। बालक की इस वीरता को देखते हुए जोधपुर नरेश महाराजा जसवंत सिंह ने अपने दरबार में बुलाया। अपने दरबार में उस वीर बालक की निडरता एवं निर्भीकता देखकर महाराजा अचंभित रह गये।
इस पर महाराजा ने दुर्गादास राठौर को अपने पास बुलाकर उनकी पीठ थपथपाई और इनाम के रूप में तलवार भेंट में दी। कार्यक्रम में पवन सिंह राठौर, मुरारीलाल राठौर, प्रहलाद राठौर, बनवारी राठौर सरपंच, भूपेंद्र राठौर, कल्ली राठौर, पवन राठौर, फत्तू राठौर, रामप्रसाद राठौर, बाबूलाल राठौर, रघुवीर राठौर, नरोत्तम राठौर, हरिमोहन राठौर, कमलेश राठौर, मानसिंह राठौर, रामजी राठौर, मुन्ना, रामहेत, भरत, धर्मेंद्र, राधे, शिवचरण, सुरेश, चेतन सहित अन्य लोग मौजूद रहे।
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