मीडिया-मिर्ची-
आज मीडिया मिर्ची का यह अंक एक पत्रकार की जिन्दगी के अहम पहलू को दर्शाने के लिये लिखा गया है जहां बताने की कोशिश कर रहा हूॅ कि पत्रकारिता क्या है यहां पल-पल, हर कदम पर कितनी समस्याओं का सामना एक कलमकार कर रहा है ।
इस प्रसंग का शीर्षक ’’कैसे लिख दूं हकीकत, जमाना कत्ल कर देगा’’ यह हकीकत है या फसाना इसका आंकलन आप सभी को करना है। इस प्रसंग में एक सत्य घटना का बर्णन है, यह घटना भले ही एक है लेकिन यही एक घटना पत्रकार के जीवन में हर रोज घटती है ।
भाई चूंकि अपन पत्रकार हैं तो अपना काम है अपने क्षेत्र की हर छोटी-बड़ी खबरों, जनसमस्याओं की जानकारी एकत्रित करना और समय रहते आबाम और प्रशासन को इनसे रूवरू करना, इस सब के पीछे एक पत्रकार की मंशा केबल और केबल जनहित ही होती है सो अपने क्षेत्र में ही अपन को सूत्रों से खबर मिलती है कि एक विद्या के मन्दिर में माहौल इन दिनों भारी खराब है साथ ही गुरूजन अपना प्रभाव दिखाने के लिये एक दूसरे को नीचा दिखाने पर भी उतारू हैं इसके अलावा विद्या वितरण तो गया भाड़ में गुरूजन अपना समय ब्यतीत करने के लिये यहां आते हैं। इस सब के बीच एक खास बात और भी निकलकर आई जिसने पत्रकार को काफी ब्यथित कर डाला, बो यह कि यहां कुछ गुरूजनों ने अपने अमानवीय कृत्य और अमर्यादित ब्यवहार को ही अपना विद्या दान मान लिया है सो भाई यहाॅ माहौल क्या होगा आप समझ सकते हैं और फिर जब यह विद्या का मन्दिर कन्या विशेष के लिये आरक्षित है।
बस इतना सुनकर पत्रकार साहब से रहा न गया और बे इसकी प्रमाणिकता खोजने चल दिये, और कुछ ही समय में सभी तथ्य प्रमाणित थे
अब खयाल आया कि भाई क्या किया जाऐ अगर उठापटक करदी तो भी मुसीबत, सब जान परिचित बाले थे और न करें तो इन गुरूजनों को बल मिलेगा और इनकी यह हरकतें बड़ती जाऐंगी और इस सब के चलते भविष्य में कोई बड़ा हादसा भी हो सकता है जिसमें कुछ की बजह से सबको भारी नुकसान उठाना पडे़ या फिर आगामी दशकों के लिये विद्या दायनी माॅ सरस्वती का यह मन्दिर कलंकित हो जाऐ , और हमारी बेटियों का भविष्य पूर्व की भांति प्राथमिक शिक्षा मात्र पर ही सिमट गऐ।
सभी बातों पर गौर कर पत्रकार साहब ने अब निर्णय लिया कि प्रथम द्वष्टया इन गुरूजनों को अभी हिदायत मात्र ही दे दी जाऐ अगर फिर भी हालात न सुधरे तो हर संभव लड़ाई लड़ने को हम तत्पर रहेंगे ,सो अब क्या होना था साहब पहुंच गये समय पर और हालातों की गंभीरता को देखते हुऐ हिदायत दे डाली।
इस बीच पत्रकार महोदय की बाणी में बहुत सयंम और स्पष्ठता थी जिसे यहाॅ गंभीरता से लेकर हालातों में सुधार की ओर प्रयास किया जाना था लेकिन हुआ विल्कुल विपरीत -इस घटना को अभी लगभग आधा घण्टा ही न हो पाया था कि पत्रकार महोदय का फोन चिल्लाने लगा जिस पर किसी ने संबंधों की दुहाई दी तो किसीने अपनी पहुंच का पैमाना बताया, किसीने ने विनती की इस पर ध्यान न देने की तो किसीने इस हिदायत को हवा में उड़ाया।
लेकिन बहुत अफसोस साहव किसी ने अपनी गलती न मानी और न ही किसी ने यहां सुधार का रास्ता अपना । सामने आया तो केबल इतना कि जो होता है होने दो
लेकिन ऐसा पत्रकार होने नहीं देगा क्योंकि उसके सिर आप (समाज) ने जो जिम्मा डाला है बह उसे मजबूर कर रहा है बड़ी विशम परिस्थित थी उस बक्त जब रातों की नींद में भी इसी घटना बह अल्फाज दे रहा था बार-बार हैडिंग बनाकर खुद ही मिटा रहा था सोच तो रहा था वहुत कुछ जमाने के बारे में लेकिन कैसे लिख दे हकीकत जमाना कत्ल कर देगा ।
यह आप पाठकों के लिये एक लेख मात्र हो सकता है परन्तु बास्तविकता में यह बो सत्य घटना है जो एक पत्रकार के साथ रोज घटित होती है और यह प्रसंग पुर्णतः सत्य घटना पर आधारित है जो कि वर्तमान वनी हुई है।
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