बीते दिन और रात्रि में जमकर बरसे बदरा के चलते शहर को जहां भीषण गर्मी से राहत तो मिली ही है साथ ही किसानों के मायूस चहरों पर भी अब मुस्कान देखने को मिल रही है इसी बीच एक नजारा और भी देखने को मिला है हर बार की भांति इस बार भी श्योपुर किले की तलहटी में कदवाल नदी के किनारे विराजे गुप्तेश्वर महादेव का यह अति प्राचीन मन्दिर जो कि शहर के निकट किले की तलहटी में सीप और कदवाल नदियों के संगम पर स्थित है अपनी अद्वितीय प्राचीनता के लिए खास अहमियत रखता है। हालांकि गुप्तेश्वर महादेव का मुख्य मंदिर तो कदवाल नदी के बीच बना है, जो नदी में पानी रहने के दौरान जलमग्न रहता है, लेकिन बाहर किनारे पर बने नए मंदिर में ही लोग पूजा-पाठ करते हैं।
मान्यता है कि भगवान के इस जगह पर उत्पत्ति के पीछे एक कहानी हैं जो काफी दिलचस्प है। जिसके अनुसार यह शिवलिंग हजारों साल पुराना है और इसकी स्थापना पांडवों द्वारा अपने अज्ञातवास के दिनों में तब की गई थी, जब वह श्योपुर के जंगलों से घूमते हुए गुजरे और यहां पर पूजा की गई। कहा जाता है कि द्वापर युग के दौरान पांडव जब वनवास पर थे, तब वह श्योपुर के बियावान जंगलों में काफी दिनों तक ठहरे थे। इस दौरान यहां कदवाल नदी क्षेत्र में भगवान शिव की स्थापना करने के दौरान इनके द्वारा पूजन-अर्चन किया गया और इसके बाद ही भगवान का यह मंदिर कदवाल नदी में समा गया और गुप्त रहकर गुप्तेश्वर कहलाया।
अब नए शिवालय में होती है पूजा-पाठ-
गुप्तेश्वर मंदिर के सामने ही एक अन्य शिवालय बना हुआ है, जिसमें एक साथ दो शिवलिंग स्थापित है पर नया मंदिर भी जल मग्न हो गया। इन्ही शिवलिंगों की नियमित पूजा-अर्चना होती है, जबकि जलमग्न शिव मंदिर के दर्शन का अवसर गर्मियों में नदी का पानी सूखने के बाद ही मिल पाता है। इस अतिप्राचीन गुप्तेश्वर महादेव मंदिर के प्रति जिलेवासियों की असीम श्रद्धा है और श्रावण मास के दौरान यहां पर सतत पूजा पाठ के कार्यक्रम चलते रहते हैं।
हजारों साल पुराना है शिवलिंग -
गुप्तेश्वर महादेव मंदिर को लेकर लोकोक्ति है कि यह शिवलिंग हजारों साल पुराना है और इसकी स्थापना पांडवों के द्वारा अपने वनवास के दिनों में की गई थी, जब वह श्योपुर के जंगलों से घूमते हुए गुजरे और यहां पर पूजा की गई। कहा जाता है कि द्वापर युग के दौरान पांडव जब वनवास पर थे, तब वह श्योपुर के बियावान जंगल में काफी दिनों तक ठहरे थे। इस दौरान यहां कदवाल नदी क्षेत्र में भगवान शिव की स्थापना करने के दौरान इनके द्वारा पूजन किया गया और इसके बाद ही भगवान का यह मंदिर कदवाल नदी में समा गया और गुप्त रहकर गुप्तेश्वर कहलाया। गुप्तेश्वर मंदिर के सामने ही एक अन्य शिवालय बना हुआ है, जिसमें एक साथ दो शिवलिंग स्थापित है।
भव्य मंदिर बनाने चल रहा निर्माण-
जन जन के आस्था के केन्द्र इस शिवालय को और भव्य बनाने के लिए समिति के द्वारा निर्माण कार्य कराया जा रहा है। समिति द्वारा इसकी जो ड्राइंग कराई गई है, उसमें मंदिर के साथ नदी पर पुल का निर्माण और दूसरे छोर पर पार्क भी शामिल है, जिससे इस केन्द्र की सुंदरता का और अधिक निखरना तय है।