उत्कर्ष बैरागी(दबंग की कलम से)-
विगत कई वर्षों से सरकारें सब कुछ करती आई हैं, कई फैसले अभी तक सरकारों ने लिए हैं और यकीनन आगे भी लेती रहेंगी, लेकिन इस सबके बीच आम हितों का ध्यान कहां तक रखा जाता है यह सब आपके सामने है और इसका मुख्य कारण हमारे राजनेता हैं जो सिर्फ वोटों की राजनीति करना जानते हैं इसके लिए बे कुछ भी कर गुजरने को आमादा है वर्षों से हमारी पहचान रही अखंडता को आज खंडित करने का हर संभव प्रयास हमारे ही नेता कर रहे हैं कभी हिंदू, मुस्लिम के नाम पर राजनीति तो कभी दलित और सवर्ण की राजनीति अर्थात हमारी अखंडता को खंडित कर आज हमें बांटने का भरसक प्रयास किया जा रहा है, आज आम आदमी को आम ना होने देकर जाति, समुदाय विशेष का हिस्सा मात्र बना, अपनी वोट बैंक बनाने का प्रयास में सरकारें काम कर रही हैं, लेकिन क्या आज भी वही पुराना समय आ गया है जहां हमें जो कहने ,सुनने, देखने को कहा जाए और हम वही कहे देखें ,सुने क्या स्वतंत्र भारत के स्वतंत्र नागरिक की स्वतंत्रता यहीं तक की थी।
यह सब बड़ा ही कष्टकारक है लेकिन इस प्रसंग का सीधा सा उद्देश्य मात्र इतना ही है कि उस समय और इस समय के अंतर को हमने कितना समझा?
आज पुराने समय की अपेक्षा समय बहुत आगे निकल चुका है आज साक्षरता का प्रतिशत कई गुना बढ़ गया है जागरूकता की कमी भी काफी हद तक पूरी हो चुकी है, हमारी युवा पीढ़ी भी आज पूर्णता सशक्त है लेकिन फिर क्यों ऐसा हो रहा है कि हम आज बेबस और मजबूर हैं हर उस नियम कानून को मानने के लिए जो हमें बांटता है इस लेख में चंद लाइनें याद आ गई जो कभी किसी कव्वाल ने कहीं थी कि-
"एक रहोगे तो सफलता पाओगे
नहीं तो किस्तों में मारे जाओगे"
आज हम चंद लोग अपना हित देखकर सबका अहित होने देने को तैयार हैं ,और बे सभी भी चंद हो होकर कई चंदों का अहित होने दे रहे हैं, लेकिन सभी को मिलाकर देखें तो केवल अहित ही हमारे हाथ में लगता है।
इस सबको देखकर लगता है कि वह गुजरा जमाना फिर आ रहा है
"शायद जनता जागरुक हो गई है"